प्रसिद्ध भोजपुरी लोक गायिका शारदा सिन्हा का 5 नवंबर 2024 को 72 वर्ष की उम्र में दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। लंबे समय से मायलोमा कैंसर से पीड़ित शारदा सिन्हा का इलाज चल रहा था। उनके निधन की खबर से न केवल संगीत प्रेमियों में बल्कि पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई प्रमुख हस्तियों और उनके प्रशंसकों ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।

बेटे ने किया अंतिम संस्कार की जानकारी साझा

शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमन सिन्हा अपनी मां के निधन से बेहद दुखी हैं। उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट के माध्यम से जानकारी दी कि उनकी मां का अंतिम संस्कार पटना में किया जाएगा। अंशुमन ने बताया कि यह उनकी मां की अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार वहीं किया जाए, जहां उनके पति का अंतिम संस्कार हुआ था। उन्होंने कहा, “मां की यही इच्छा थी कि उनका अंतिम विदाई उसी स्थान पर हो जहां पिताजी का अंतिम संस्कार हुआ था।”

राजकीय सम्मान के साथ होगा अंतिम संस्कार

शारदा सिन्हा के प्रति लोगों की श्रद्धा को देखते हुए बिहार सरकार ने उनके अंतिम संस्कार को राजकीय सम्मान के साथ करने का निर्णय लिया है। बीजेपी सांसद और लोकप्रिय गायक मनोज तिवारी ने भी इस बात की पुष्टि की और बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे मंजूरी दे दी है। शारदा सिन्हा का पार्थिव शरीर पटना ले जाया जा रहा है, जहां उन्हें भावभीनी विदाई दी जाएगी।

लंबे समय से कैंसर से जूझ रही थीं शारदा सिन्हा

लोक गायिका शारदा सिन्हा को साल 2018 में मायलोमा कैंसर (एक प्रकार का ब्लड कैंसर) का पता चला था। इस घातक बीमारी के कारण उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे गिरता गया। हाल के दिनों में उनकी स्थिति बेहद नाजुक हो गई थी, जिसके चलते उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। पिछले 15 दिनों से वह आईसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट पर थीं। इलाज के बावजूद उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो सका, और अंततः 5 नवंबर को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

बिहार की माटी से जुड़ी रही गायिका

सुपौल, बिहार में जन्मी शारदा सिन्हा ने अपने जीवन में लोक संगीत को ही समर्पित कर दिया। उनके गाए हुए लोक गीतों में बिहार और उत्तर प्रदेश की मिट्टी की महक महसूस की जा सकती है। शारदा सिन्हा की पहचान उनकी मधुर आवाज, बड़ी लाल बिंदी, सिंदूर से सजी मांग और चश्मे वाली महिला के रूप में थी, जिसने उन्हें आम लोगों के बीच विशेष पहचान दिलाई।

उन्होंने अपने करियर में मुख्य रूप से लोक गीत गाए, जो भोजपुरी, मैथिली और मगही भाषाओं में हैं। उनके कुछ प्रसिद्ध गीतों में “काहे तोसे सजना”, “पीरितिया के बंधन”, और “ससुरा में जाय के” शामिल हैं, जो आज भी शादी-ब्याह और त्योहारों के अवसरों पर खूब सुने जाते हैं।

पद्मभूषण से सम्मानित लोकगायिका

शारदा सिन्हा को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और पद्मभूषण जैसे सर्वोच्च सम्मान दिए गए, जो उनकी संगीत के प्रति समर्पण और लोक संस्कृति के संवर्धन में योगदान को दर्शाते हैं। उनके द्वारा गाए गीतों ने बिहार और उत्तर प्रदेश की संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई।

शारदा सिन्हा का लोक संगीत से जुड़ाव केवल गायकी तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने अपने जीवन में लोक संगीत को संरक्षित करने और नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रयास किए। उनकी आवाज में एक अद्भुत सहजता और सरलता थी, जो सुनने वालों को उनके गीतों से जोड़ देती थी।

प्रधानमंत्री मोदी और बॉलीवुड सेलेब्स ने जताया शोक

शारदा सिन्हा के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर शोक जताया। उन्होंने लिखा, “शारदा सिन्हा जी के निधन की खबर बेहद दुखद है। उनकी गायकी में भारतीय संस्कृति और परंपराओं की झलक थी। वह हमारे लोकगीतों की अमूल्य धरोहर थीं। उनके जाने से लोक संगीत को अपूरणीय क्षति हुई है।”

इसके अलावा बॉलीवुड की कई हस्तियों ने भी शारदा सिन्हा के निधन पर श्रद्धांजलि दी। भोजपुरी इंडस्ट्री के कई बड़े कलाकारों और गायक मनोज तिवारी ने भी शारदा सिन्हा को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि शारदा सिन्हा जैसी लोकगायिका भारतीय संगीत के क्षेत्र में दुर्लभ हैं, और उनके जाने से इंडस्ट्री को एक बड़ी क्षति हुई है।

लोक गायिका के जीवन पर एक नजर

शारदा सिन्हा का जन्म बिहार के सुपौल जिले में हुआ था, जहां से उन्होंने अपने लोक गीतों का सफर शुरू किया। बचपन से ही संगीत में उनकी रुचि थी और उन्होंने अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करते हुए संगीत में अपना स्थान बनाया। उनके गाए गीतों में समाज और संस्कृति का विशेष स्थान था, जिसने उन्हें लाखों दिलों में बसाया। उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से न केवल समाज को मनोरंजन दिया, बल्कि अपनी संस्कृति को संजोने और सहेजने का काम भी किया।

शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत में कई मंचीय प्रस्तुतियां दीं, जिनमें उन्होंने दर्शकों के दिलों को छू लिया। उनके गीतों में न केवल लोक संगीत था बल्कि समाज और संस्कृति के प्रति गहरी समझ और संवेदनशीलता भी थी। इसीलिए उन्हें “लोक संगीत की मर्मज्ञ” माना जाता था।

अंतिम विदाई

शारदा सिन्हा की अंतिम यात्रा पटना में निकाली जाएगी, जहां उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जाएगी। बिहार की इस बेटी को खोने का दुख आज हर संगीत प्रेमी और लोक कला से जुड़े लोगों को है। शारदा सिन्हा ने अपने जीवन को लोक संगीत के प्रचार-प्रसार में समर्पित किया और आज उनके योगदान को हर कोई नमन कर रहा है।

उनका जाना न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि भोजपुरी और लोक संगीत प्रेमियों के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनका संगीत और उनकी आवाज हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेगी और भारतीय लोक संस्कृति में उनकी धरोहर अमर रहेगी।

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